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Monday, December 23, 2024

तीसरे पक्ष के उल्लंघन के कारण साइबर धोखाधड़ी होने पर बैंक ग्राहकों की कोई जिम्मेदारी नहीं: हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट ने बैंक ऑफ बड़ौदा को एक कंपनी के बैंक खाते से धोखाधड़ी करके काटे गए 76 लाख रुपये वापस करने का निर्देश दिया है।
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बंबई उच्च न्यायालय ने गुरुवार को कहा कि जब कोई अनधिकृत लेनदेन किसी तीसरे पक्ष के उल्लंघन के कारण होता है और इसमें बैंक या ग्राहक की नहीं, बल्कि सिस्टम में कहीं कमी होती है, तो ग्राहक की कोई जिम्मेदारी नहीं होती। न्यायालय ने बैंक ऑफ बड़ौदा को एक कंपनी के बैंक खाते से धोखाधड़ी से काटे गए 76 लाख रुपये वापस करने का निर्देश दिया।

न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी और न्यायमूर्ति फिरदौस पूनीवाला की खंडपीठ जयप्रकाश कुलकर्णी और फार्मा सर्च आयुर्वेद प्राइवेट लिमिटेड द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें बैंकिंग लोकपाल द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें बैंक ऑफ बड़ौदा को साइबर धोखाधड़ी के माध्यम से कथित रूप से उनके खाते से हस्तांतरित 76 लाख रुपये की राशि वापस करने का निर्देश देने से इनकार कर दिया गया था।

उच्च न्यायालय की पीठ ने भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी जुलाई 2017 के एक परिपत्र का हवाला देते हुए यह भी कहा कि बैंक ऑफ बड़ौदा के पास उपभोक्ता संरक्षण नीति (अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेनदेन) नामक एक नीति है जो इसी बात को दोहराती है।

उच्च न्यायालय ने कहा कि यह इस बात का उदाहरण है कि किस तरह निर्दोष लोग साइबर धोखाधड़ी का शिकार बन रहे हैं। न्यायालय ने कहा, “आरबीआई के परिपत्र और बैंक की नीति दोनों के अनुसार, जब अनधिकृत लेनदेन किसी तीसरे पक्ष के उल्लंघन के कारण होता है, तो ग्राहक की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है, जहां कमी न तो बैंक की है और न ही ग्राहक की, बल्कि सिस्टम में कहीं और होती है और ग्राहक एक निश्चित समय सीमा के भीतर अनधिकृत लेनदेन के बारे में बैंक को सूचित करता है।”

अदालत ने कहा कि इसलिए, अनधिकृत लेनदेन के संबंध में याचिकाकर्ताओं की देयता शून्य होगी, क्योंकि लेनदेन तीसरे पक्ष के उल्लंघन के कारण हुआ है, जिसमें कमी न तो बैंक की है और न ही याचिकाकर्ताओं की है।

याचिका के अनुसार, 1 अक्टूबर 2022 को याचिकाकर्ता कंपनी के बैंक खाते में कुछ संस्थाओं/व्यक्तियों को लाभार्थी के रूप में जोड़ा गया, जबकि याचिकाकर्ता को पंजीकृत मोबाइल नंबर पर कोई ओटीपी नहीं भेजा गया। एक दिन बाद, 2 अक्टूबर को याचिकाकर्ता के बैंक खाते से ऑनलाइन लेनदेन के माध्यम से विभिन्न अज्ञात व्यक्तियों को 76 लाख रुपये की राशि हस्तांतरित की गई।

याचिकाकर्ताओं ने तुरंत शहर पुलिस के साइबर सेल में शिकायत दर्ज कराई और बैंक प्रबंधक को कथित धोखाधड़ी की जानकारी दी।

याचिकाकर्ताओं ने बैंक से यह भी जानना चाहा कि जुलाई 2017 के भारतीय रिजर्व बैंक के ‘ग्राहक संरक्षण – अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेनदेन में ग्राहकों की देयता सीमित करना’ परिपत्र में जारी निर्देशों के अनुसार राशि वापस करने के लिए उसने क्या कदम उठाए हैं।

जब याचिकाकर्ताओं को रिफंड नहीं मिला, तो उन्होंने बैंक लोकपाल के पास शिकायत दर्ज कराई, जिन्होंने जनवरी 2023 में उनकी शिकायत को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि लेन-देन लाभार्थियों को जोड़ने और केवल बैंक खाताधारकों को ज्ञात वैध क्रेडेंशियल्स के इनपुट के बाद किया गया था और इसलिए, बैंक की ओर से कोई कमी/चूक नहीं हुई थी।

पीठ ने साइबर सेल पुलिस द्वारा प्रस्तुत तीन रिपोर्टों का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि लाभार्थियों को पंजीकृत मोबाइल नंबर और पंजीकृत ईमेल खाते पर ईमेल पर प्राप्त किसी भी संदेश या ओटीपी के बिना बैंक खाते में जोड़ा गया था।

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘इस प्रकार, लाभार्थियों को जोड़ने के बारे में याचिकाकर्ताओं को कोई सूचना नहीं दी गई और याचिकाकर्ताओं को पंजीकृत मोबाइल नंबर पर केवल तभी संदेश प्राप्त हुए जब बैंक खाते से राशि वास्तव में डेबिट हो गई थी।’’

बैंक ने हाईकोर्ट को बताया कि लाभार्थियों को बैंक खाते में केवल उन्हीं लोगों द्वारा जोड़ा जा सकता है, जिनके पास बैंक खाताधारकों की गोपनीय जानकारियों तक पहुंच हो। बैंक ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं की जानकारियों से याचिकाकर्ताओं की ओर से ही समझौता किया गया था और इसलिए, उसे जिम्मेदार या दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

अदालत ने कहा कि वह साइबर सेल द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट से संतुष्ट है कि याचिकाकर्ताओं ने कोई लापरवाही नहीं बरती है और कथित धोखेबाजों के साथ याचिकाकर्ताओं की कोई मिलीभगत नहीं है।

अदालत ने कहा कि यह स्पष्ट है कि बैंक और याचिकाकर्ता दोनों ही तीसरे पक्ष के धोखेबाजों द्वारा की गई धोखाधड़ी के शिकार हुए हैं।

अदालत ने कहा कि आरबीआई के परिपत्र के अनुसार याचिकाकर्ता बैंक से राशि वापस पाने का हकदार है और उसने बैंक ऑफ बड़ौदा को छह सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता के बैंक खाते में 76 लाख रुपये वापस करने का निर्देश दिया।

पीठ ने यह भी कहा कि बैंक लोकपाल ने कोई उचित जांच नहीं की तथा केवल यह कहा कि लाभार्थियों के नाम जुड़ने के बाद लेनदेन किया गया।

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