उमर अब्दुल्ला की हालिया टिप्पणियों पर प्रतिक्रिया देते हुए महबूबा मुफ़्ती ने नेशनल कॉन्फ़्रेंस के उपाध्यक्ष की आलोचना की। अब्दुल्ला ने कहा था कि जमात-ए-इस्लामी की चुनावों में भागीदारी, जिसे पहले “हराम” (निषिद्ध) माना जाता था, अब “हलाल” (अनुमेय) मानी जाती है। मुफ़्ती ने बताया कि नेशनल कॉन्फ़्रेंस ने 1947 से जम्मू और कश्मीर में चुनावों को “हलाल” या “हराम” के रूप में परिभाषित करने का यह दौर शुरू किया। उन्होंने अब्दुल्ला की पार्टी पर पाखंड का आरोप लगाते हुए कहा, “नेशनल कॉन्फ़्रेंस सत्ता में होने पर चुनावों को ‘हलाल’ और सत्ता से बाहर होने पर ‘हराम’ कहती है।”
मुफ़्ती ने सरकार से जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध हटाने का आग्रह किया और कहा कि जीवंत लोकतंत्र के लिए इसकी भागीदारी महत्वपूर्ण है। श्रीनगर में पत्रकारों से बात करते हुए मुफ़्ती ने इस बात पर ज़ोर दिया कि लोकतंत्र मूल रूप से “विचारों की लड़ाई” है और जमात-ए-इस्लामी को चुनाव लड़ने की अनुमति देने से चुनावी परिदृश्य समृद्ध होगा। उन्होंने कहा, “सरकार को जमात-ए-इस्लामी की सभी संपत्तियों और संस्थानों को वापस कर देना चाहिए।”
जम्मू और कश्मीर में 18 सितंबर, 25 सितंबर और 1 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर राजनीतिक दलों के बीच वाकयुद्ध जारी है, जिसके नतीजे 4 अक्टूबर को घोषित किए जाएंगे।